हानिकारक : बावची शरीर में घाव पैदा करता है। बावची का अधिक सेवन करने से उल्टी हो सकती है।
दोषों को दूर करने वाला : दही और सौंफ इसके गुणों को सुरक्षित रखकर इसके दोषों को दूर करते हैं।
मात्रा : इसे 2 ग्राम की मात्रा में सेवन किया जाता है।
गुण : बावची भूख बढ़ाती है तथा सफेद दाग, स्याह रंग का दाग, खुजली और कोढ़ को साफ करती है। यह कफ से आये हुए बुखार को दूर करती है। पेट के कीड़ों को मारती है और पेशाब के रास्ते घावों को भर देता है।
कुष्ठ (कोढ़) की बीमारी :
3-3 ग्राम बाकुची और तिल को मिलाकर थोड़ा सा पीसकर सुबह और शाम पानी के साथ खाने से कुष्ठ (कोढ़) का असर समाप्त हो जाता है लेकिन इसको कम से कम 7-8 महीने तक खाना चाहिए।
25 ग्राम बाकुची के बीज, 25 ग्राम श्वेत (सफेद) मूसली और 25 ग्राम चित्रक को एक साथ पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें। इसमें से 4 ग्राम चूर्ण शहद के साथ सुबह और शाम खाने से कुष्ठ (कोढ़) के रोग में बहुत आराम आता है।
भांगरा और बाकुची को छाया में सुखाकर और पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 5 ग्राम चूर्ण को 21 दिन तक पानी के साथ खाने से कुष्ठ (कोढ़) रोग ठीक हो जाता है।
6 ग्राम भांगरा और बकुची का चूर्ण पानी के साथ 21 दिनों तक खायें और पानी में पीसकर कोढ़ पर लेप करने से यह रोग जड़ से खत्म हो जाता है। जितने दिन इस चूर्ण का सेवन क
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