*बंगाल में जब पुल गिरा तो मोदी ने मजाक उडाया था। कहा था कि पुल गिरना एक्ट ऑफ गॉड नहीं एक्ट ऑफ फ्रॉड है* *अब वनारस का हादसा किसका फ्राड है मोदी साहेब*?? ????
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अतीक के बेटे असद का यूपी पुलिस ने किया एनकाउंटर @aajtak @AajTakHD @zeenews @TV9Bharatvarsh @ABPNEWS @abp_live
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1. भगत सिंह- भगत सिंह का जन्म 27 सितम्बर 1907 को जिला लायल पुर बलिदानी दिवस : बंगा गाँव में हुआ था। पिता सरदार किशन और चाचा भी महान क्रान्तिकाकेरी थे।
2. सुखदेव- सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। पिता का नाम रामलाल और माता का नाम श्रीमति रल्ली देई था। तीन वर्ष की अल्पआयु में ही पिता का साया सर से उठ गया था। ताया श्री चिन्तराम के संरक्षण में आपका बचपन बीता।
3. राजगुरू- पुणे जिले के खेड़ में जन्में राजगुरू का पूरा नाम शिवराम राजगुरू हरि था। आपका जन्म 24 अगस्त 1908 को हुआ | चंद्रशेखर के सबसे विश्वशनीय राजगुरू की परवरिश कट्टर हिन्दुओं के मध्य हुई थी किन्तु बाद में उनका मन क्रान्तिकारी विचारधारा से प्रभावित हो गया। राजगुरू निशानेबाजी में भी सिद्धस्त थे। लाहौर केस में मुख्य अभियुक्त के रूप में उन्हे 30 सितंबर 1929 को पूना से गिरफ्तार किया गया था।
*23 मार्च 1931 की मध्यरात्रि को अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था ।*अदालती आदेश के मुताबिक भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह करीब 8 बजे. लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातों रात ले जाकर व्यास नदी के किनारे जला दिए गए. अंग्रेजों ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च को ही भगतसिंह और अन्य को फांसी दे दी.
दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों की अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने वाली घटना की वजह से हुई. 8 अप्रैल 1929 के दिन चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका. जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका इसके पश्चात क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला. भगत सिंह और बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला.
भगत सिंह और उनके साथियों पर ‘लाहौर षडयंत्र’ का मुकदमा भी जेल में रहते ही चला. भागे हुए क्रांतिकारियों में प्रमुख राजगुरु पूना से गिरफ़्तार करके लाए गए. अंत में अदालत ने वही फैसला दिया, जिसकी पहले से ही उम्मीद थी. भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को मृत्युदंड की सज़ा मिली.
23 मार्च 1931 की रात पराधीन भारत के तीन नायकों ने हंसी हंसी मौत की सूली को गले से लगा लिया. आज भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव तो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी आवाज और सोच आज भी हमारे अंदर है. उनका मानना था कि सत्ता की नींद में सोई सरकार को जगाने के लिए एक धमाके की जरुरत होती है.
सुखदेव, राजगुरू और भगत सिंह की शहादत ने आजदी के लिए जन-जन में जो जागृति का संचार किया वो इतिहास में अविस्मरणिय है। जनमानस के ह्रदय में इंकलाब की गूंज को पहुचाने वाले देश के इन अमर वीर सपूतों को उनकी शहादत पर हम श्रद्धांजलि सुमन अर्पित करते हैं।
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