अथ शब्द | Ath Shabad | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
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मोकूँ कहाँ ढूंढ़े रे बंदे, मैं तो तेरे पास में।। टेक।।
ना तीर्थ में ना मूरत में, ना एकान्त निवास में।
ना मन्दिर में, ना मस्जिद में, ना काशी कैलाश में।।1।।
ना मैं जप में ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपवास में।
ना मैं क्रिया कर्म में रहता, ना मैं योग सन्यास में।।2।।
नहीं प्राण में नहीं पिण्ड में, ना ब्रह्मण्ड आकाश में।
ना मैं त्रिकुटी भंवर गुफा में, सब श्वासन के श्वास में।।3।।
खोजी होय तुरंत मिल जाऊँ, एक पल ही की तलाश में।
कहै कबीर सुनों भई साधो, मैं तो हूँ विश्वास में।।4।।
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मस्तक लाग रही म्हारे, गुरु चरणन की धूर।। टेक।।
जब यह धूल चढ़ी मस्तक पै, दुविधा हो गई दूर।
इड़ा पिंगला ध्यान धरत है, सुरति पहुँची दूर।।1।।
यह संसार विघन की घाटी, निकसत बिरला शूर।
प्रेम भक्ति गुरु रामानन्द लाये, करी कबीरा भरपूर।।2।।
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