???????????????? उत्तराखंड में इन दिनों बारिश और बर्फबारी का दौर जारी है. वहीं केदारनाथ धाम में जमकर बर्फबारी हुई है. जिस कारण निचले स्थानों में ठंड बढ़ गई है. वहीं लोग ठंड से बचने के लिए अलाव का सहारा ले रहे हैं l
धारी देवी माता मंदिर ll रुद्रप्रयाग ll उत्तराखंड ll#dhari #dharidevimandir #youtubeshorts #shorts
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????????????????इस मंदिर को धारी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।
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??श्री मुरुदेश्वर मंदिर विश्व की दूसरी सबसे ऊंची शिव प्रतिमा ???️#youtubeshorts #shorts
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कर्नाटक के मुरुदेश्वर मंदिर का इतिहास रामायण काल से जुड़ा है । किंवदंती कहती है कि रावण (लंका राजा) ने आत्मलिंग प्राप्त करके अमरता प्राप्त करने के लिए दृढ़ भक्ति में भगवान शिव से प्रार्थना की। आत्म लिंग शिव का दिव्य लिंग है जो हिंदू देवताओं को अमरता प्रदान करता है।
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कैसे पड़ा मां झंडेवाला मंदिर का नाम ? #youtubeshorts#shorts #navratri #jhandewaladevimandir #maa
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????????????????18वीं सदी में आज जिस जगह मंदिर स्थित है तब वहां पर अरावली श्रृंखला की हरी-भरी पहाड़ियां हुआ करती थी घने वन व कलकल करते चश्मे बहते थे। अनेकों पशु-पक्षियों का बसेरा हुआ करता था इस वन की सुंदरता व शांत वातावरण के कारण लोग यहां सैर करने आते थे। ऐसे ही लोगों मे चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपड़ा व्यापारी बद्री दास आते थे। वह धार्मिकवृत्ति के व्यक्ति थे तथा माँ वैष्णो के भक्त थे, बद्री दास इस जगह नियमित रूप से सैर करने आते थे तथा यही पर ध्यान में लीन हुआ करते थे इसी पश्चात लीन अवस्था मे उन्हें ऐसी अनुभूति हुई कि निकट में चश्मे के पास एक गुफा में प्राचीन मंदिर दबा हुआ है। कुछ समय बाद उन्हें फिर सपने में वह मंदिर दिखाई दिया। उन्हें यह प्रतीत हो गया कि इस वनों के पास मंदिर दबा हुआ है। बद्री दास जी ने वहां जमीन खरीद कर, खुदाई आरम्भ करवाई। खुदाई करवाते समय उन्हें मंदिर के शिखर पर झंडा दिखा, उसके बाद खुदाई करते समय माँ की मूर्ति प्राप्त हुई, मगर खुदाई में उनके हाथ खंडित हो गए, खुदाई में प्राप्त हुई मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया किंतु खंडित हाथो को चांदी के हाथ पिरोह दिए। दूसरी चट्टान की खुदाई में शिवलिंग दिखाई पड़ा, मगर खंडित ना हो इस भय से उसे वही रहने दिया गया, आज भी वह शिवलिंग मंदिर की गुफा में स्थित है।
मंदिर के निर्माण में जिस जगह माता की मूर्ति मिली थी उसी के ठीक ऊपर देवी की नयी मूर्ति स्थापित कर उसकी विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा करवाई गई। इस अवसर पर मंदिर के शिखर पर माता का एक बहुत बड़ा ध्वज लगाया गया, जो पहाड़ी पर स्थित होने के कारण दूर-दूर तक दिखाई देता था इसी कारण से यह मंदिर (झंडेवाला मंदिर) के नाम से विख्यात हो गया।
मंदिर की स्थापना के साथ ही भक्तों का आना-जाना प्रारम्भ हो गया, धीरे-धीरे मंदिर का स्वरूप भी बदलता गया। बद्री दास जी जोकि अब भगत बद्री दास के नाम से विख्यात हो चुके है उन्होंने अपना पूरा जीवन माँ झंडेवाली की सेवा में समर्पित कर दिया। उनके स्वर्गवास के बाद उनके सुपुत्र रामजी दास और पौत्र श्याम सुंदर जी ने मंदिर के दायित्व को संभाला तथा अनेक विकास कार्य इस स्थान से करवाये।
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केदारनाथ धाम ll चमत्कारिक भीमशिला पत्थर ll बाबा भैरव नाथ #kedarnath #mahadev #youtubeshorts #shorts
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जब केदारनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं और केदारनाथ में कोई नहीं रहता है तो भैरवनाथ ही संपूर्ण केदारनगरी की रक्षा करते हैं।
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जब बादलों से वर्षा रुकने का नाम नही ले रही थी, नदियों में उफान आ गया था व सब कुछ उस भयंकर बाढ़ में बहता चला जा रहा था तो उस समय केदारनाथ मंदिर पर भी संकट आ खड़ा हुआ था (Bhim Shila story in Hindi)। आख़िरकार बाढ़ का पानी केदारनाथ धाम तक पहुँच गया व अति तीव्र गति से मंदिर की ओर बढ़ने लगा। यदि वह पानी मंदिर से टकरा जाता तो मंदिर का टूटकर बह जाना निश्चित था।
उसी समय पहाड़ों से एक विशाल चट्टान टूटकर गिरी व पानी के साथ मंदिर की ओर बढ़ी। यह चट्टान तेज गति से मंदिर के ओर आई व ठीक मंदिर के पीछे आकर अपने आप रुक गयी। बाढ़ का पानी मंदिर की ओर आया तो वह इस विशाल चट्टान से टकराकर दो भागों में बंट गया व मंदिर के किनारों से निकल गया।
आज भी यह चट्टान उसी स्थान पर मंदिर के पीछे खड़ी हैं जिसे भीम शिला नाम दिया गया हैं। शिव भक्त जब केदारनाथ धाम के दर्शन करने आते हैं तो वे इस चट्टान की भी पूजा करते हैं। इसी चट्टान के कारण मुख्य मंदिर की रक्षा हो पाई थी।
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https://www.youtube.com/watch?v=uxeArvw3STY
गोपीनाथ मंदिर एक प्राचीन मंदिर है जो भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर अपने वास्तु के कारण अलग से पहचाना जाता है; इसका एक शीर्ष गुम्बद और ३० वर्ग फुट का गर्भगृह है, जिस तक २४ द्वारों से पहुँचा जा सकता है।
मंदिर के आसपास टूटी हुई मूर्तियों के अवशेष इस बात का संकेत करते हैं कि प्राचीन समय में यहाँ अन्य भी बहुत से मंदिर थे। मंदिर के आंगन में एक ५ मीटर ऊँचा त्रिशूल है, जो १२ वीं शताब्दी का है और अष्ट धातु का बना है। इस पर नेपाल के राजा अनेकमल्ल, जो १३ वीं शताब्दी में यहाँ शासन करता था, का गुणगान करते अभिलेख हैं। उत्तरकाल में देवनागरी में लिखे चार अभिलेखों में से तीन की गूढ़लिपि का पढ़ा जाना शेष है।
दन्तकथा है कि जब भगवान शिव ने कामदेव को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका तो वह यहाँ गढ़ गया। त्रिशूल की धातु अभी भी सही स्थित में है जिस पर मौसम प्रभावहीन है और यह एक आश्वर्य है। यह माना जाता है कि शारिरिक बल से इस त्रिशुल को हिलाया भी नहीं जा सकता, जबकि यदि कोई सच्चा भक्त इसे छू भी ले तो इसमें कम्पन होने लगता है।
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केदारनाथ धाम के दिव्य दर्शन ll उत्तराखंड #kedarnathdham #kedarnath #youtubeshorts #shorts
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????????????????पांडवों ने शिव की पूजा के लिए इन पांच स्थानों पंच केदार पर मंदिर बनाए । इससे वे पापों से मुक्त हो गये। भगवान शिव ने त्रिकोणीय ज्योतिर्लिंग के रूप में पवित्र स्थान पर रहने का वादा किया। यही कारण है कि केदारनाथ इतना प्रसिद्ध है और भक्तों द्वारा पूजनीय है।
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हैदराबाद के बद्रीनाथ मंदिर में पूरे साल दर्शन ll#youtubeshorts #mahadev #badrinath #badrivishal
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????????????????तेलंगाना का अपना बद्रीनाथ है - जो चार धाम यात्रा के पवित्र पहाड़ी मंदिरों में से एक है । राज्य का अपना बद्रीनाथ, जो बद्रीविशाल धाम के नाम से लोकप्रिय मूल मंदिर की प्रतिकृति है, हैदराबाद से 40 किमी दूर मेडचल जिले के छोटे से गांव बंदमैलाराम में स्थापित हुआ है।
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